Monday, December 24, 2007

आनंदमठ से कुछ पंक्तियाँ:

... कोई एक गहना लेकर हमको एक मुट्ठी चावल दे दे! भूक से जान निकल रही है, आज पत्तो पर ही गुज़र हुई है! एक ने ऐसा बोला तौ सब लोग इसी तरह की बातें करने लगे और शोर मच गया - चावल दो चावल दो!भूक से जान जा रही है! ...

डाकुओं के सरदार ने उनको रोकना चाहा, पर रोके न रुकता था, धीरे धीरे ज़ोर ज़ोर से बातें होने लगी! गाली-गलोच शुरू हो गयी! यहाँ तक के हाथा पाई कि नौबत आ गई! जिसे जो कुछ भी गहना मिल था, उसे उसने तैश मे आ कर सरदार पर दे मारा!

सरदार ने जब दो एक को मारा, तब सब लोग मिलकर सरदार पर टूट पडे और उसे मारने लगे! .....एक दो वार होते ही वह गिरकर मर गया! तब भूके, रुष्ट, उत्तेजित, हतबुद्धि डाकुओं मे से एक ने कहा, हमने सीयार और कुत्ते खाये, भूक से मर रहे है! चलो, आज इसी साले को खा ले!

No comments: