Thursday, May 14, 2009

आज जाने की जिद ना करो

मेरे ख़याल से, जिसने भी आज तक फरीदा खानुम की येः ग़ज़ल सुनी है, उसने उसी महफिल मे इस ग़ज़ल को दुबारा सुनने की फरमाईश या चाहत ज़रूर राखी है!

आज जाने की जिद ना करो, यूँ he पहलु मे बैठे राहों,
आज जाने की जिद ना करो, यूँ he पहलु मे बैठे राहों
हाये मर जायेंगे, हम तौ लुट जायेंगे, एसी बातें ना किया करो,
आज जाने की जिद ना करो...

तुम he सोंचो ज़रा कियों ना रोके तुम्हे, जान जाती है जब उठके जाते हो तुम
तुम को आपनी कसम जानेजां, बात इतनी मेरी मान लो,
आज जाने की जिद ना करो...

वक़्त की कैद मे ज़िन्दगी है मगर, चन्द घडियां येही है जो आजाद है,
इनको खो कर अभी जानेजां, उम्र भर ना तरसते राहों,
आज जाने की जिद ना करो...

कितना मासूम ओ रंगीन है येःसमां, हुस्न और इश्क की आज मीराज है
कल की किसको ख़बर जानेजां, रोक लो आज की रात को,
आज जाने की जिद ना करो, यूँ he पहलु मे बैठे राहों...

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