Thursday, May 14, 2009

ए मोहब्बत...

ए मुहब्बत तेरे अंजाम पे रोना आया
जाने क्यो आज तेरे नाम पर रोना आया!

यूं तौ हर शाम उमीदों मे गुज़र जाती थी,
आज कुछ बात है जो शाम से रोना आया!

कभी तकदीर का मातम, कभी दुनिया का गिला
मंजिल ए इश्क मे हर गम पर रोना आया!

जब हुआ ज़िक्र मोहब्बत का ज़माने मे शकील
मुजको अपने दिल ए नाकाम पर रोना आया!

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उल्टी हो गयी सब तदबीरें, कुछ ने दावा ने काम किया,
देखा इस बेमारऐ दिल ने, आख़िर काम तमाम किया,
उल्टी हो गयी सब तदबीरें, कुछ ने दावा ने काम किया!

आहद ए जवानी रो रो काटा पीरी मे lee आँख मूँद,
यानी रात बहुत से जागे, सुबह हुई आराम किया,
उल्टी हो गयी सब तदबीरें, कुछ ने दावा ने काम किया!

या के सफेद ओ सियाह मे हमको दखल जो है सो इतना है,
रात को रो रो सुबह किया और, सुबह को जियोतियो शाम किया,
उल्टी हो गयी सब तदबीरें, कुछ ने दावा ने काम किया!

meer ki दींn ओ मज़हब को अब पूछते किया हो उन ने तो
कश्का खीचा, dair मे baitha कब का kark islam किया,
उल्टी हो गयी सब तदबीरें, कुछ ने दावा ने काम किया!

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